पुरश्चर्याविहीनं तु न चेदं फलदायकम्। एकादशशतं यावत् पुरश्चरणमुच्यते॥ ३५ ॥ एहि विधि ध्यान हृदय में राखै। वेद पुराण संत अस भाखै।। सप्तरात्रि जो पापहिं नामा। वाको पूरन हो सब कामा।। शिरो मे पातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातु ललाटकम्। Embracing Maa Baglamukhi’s Energy may lead to profound transformations that https://www.instagram.com/tantramantraaurvigyaan/reel/DA6ACEaONEJ/
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